
व्रत कैसे करेंः इस दिन प्रातःकाल स्नान ध्यान से निवृत्त होकर अनशन व्रत रखना चाहिए। पत्र-पुष्प तथा सुंदर वस्त्रों से मंडप तैयार करके सर्वतोभद्र की वेदी पर कलश की स्थापना के साथ-साथ गौरी-शंकर की स्वर्ण मूर्ति और नंदी की चांदी की मूर्ति रखनी चाहिए। यदि इस मूर्ति का नियोजन न हो सके, तो शुद्ध मिट्टी से शिवलिंग बना लेना चाहिए। कलश को जल से भरकर रोली, मौली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बेलपत्र, मकौआ आदि का प्रसाद शिवजी को अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। रात को जागरण करके ब्राह्मणों से शिव की स्तुति का पाठ कराना चाहिए। इस जागरण में शिवजी की चार आरती का विधान जरूरी है। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ मंगलकारी है। दूसरे दिन प्रातः जौ, तिल-खीर तथा बेलपत्रों का हवन करके ब्राह्मणों को भोजन करवा कर व्रत का पारण करना चाहिए। इस विधि-विधान तथा स्वच्छ भाव से जो भी यह व्रत रखता है, भगवान शिव प्रसन्न होकर उसे अपार सुख-संपदा प्रदान करते हैं। भगवान शंकर पर चढ़ाया गया नैवेद्य खाना निषिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि जो इस नैवेद्य को खा लेता है, वह नरक के दुखों का भोग करता है। इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम का रहना अनिवार्य है। यदि शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम हो तो नैवेद्य खाने का कोई दोष नहीं होता।
February 26th, 2011
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